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दिन में होनी चाहिए शादी या रात में? जगद्गुरु शंकराचार्य ने बताया शास्त्रों के अनुसार क्या है सही नियम

विवाह कब होना चाहिए, दिन में या रात में? हिंदू धर्म में विवाह को लेकर कई मान्यताएं और नियम हैं। सनातन धर्म में व्यक्ति के जन्म से लेकर उसकी मृत्यु तक 16 संस्कार बताए गए हैं। इन्हीं संस्कारों में से एक खास संस्कार है विवाह। अक्सर कुछ लोग दिन में विवाह करते हैं, जबकि कई जगहों पर रात में। लेकिन इसका वास्तविक नियम क्या है? विवाह कब करना चाहिए, दिन में या रात में? इस सवाल का जवाब जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी श्री: अवमुक्तेश्वरानंद सरस्वती जी ने दिया है। जानिए शास्त्रों के अनुसार इसका अर्थ।

कोई भी पुजारी कभी भी विवाह नहीं करवाएगा, वह स्वयं विवाह का संचालन करेगा

कोटा, राजस्थान से एक व्यक्ति ने अपने प्रश्न में पूछा कि विवाह रात में किया जाना चाहिए या दिन में? इस पर जगद्गुरु शंकराचार्य ने कहा, ‘सबसे पहले, अगर कोई पंडित है, तो वो शादी नहीं करवाएगा, वो शादी करवाएगा। इसलिए सबसे पहले आपको अपने शब्दों का सही चयन करना चाहिए। अगर शादी की बात करें, तो इसका दिन और रात से कोई लेना-देना नहीं है। ये स्थिर लग्न में की जाती है। अगर स्थिर लग्न में शादी होती है, तो इसका मतलब है कि शादी टिकेगी।’

सनातन धर्म में तलाक के लिए कोई स्थान नहीं

उन्होंने आगे कहा, ‘जब दो लोग साथ आते हैं, तो उनकी पहली ज़रूरत एक-दूसरे से जीवन भर जुड़े रहना होती है। हमारे शास्त्रों में ऐसा कहीं नहीं लिखा है कि एक बार पति-पत्नी साथ आ गए तो वे अलग हो सकते हैं। ऐसा कहीं नहीं लिखा है। सनातन धर्म में तलाक, छुट-छेड़, अलग-विलगी, जो भी कहो, ऐसा नहीं होता। इसीलिए विवाह के लिए स्थिर लग्न की तलाश की जाती है, ताकि विवाह स्थिर रहे। इसलिए स्थिर लग्न रात में भी आते हैं और दिन में भी। इसलिए लग्न के अनुसार दिन या रात में कभी भी विवाह किया जा सकता है। इसमें दिन या रात का कोई विचार नहीं किया जाता।’

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शंकराचार्य ने कहा, रात में शादी करने की प्रथा मुगलों के आने के बाद शुरू हुई है। (प्रतीकात्मक फोटो AI)

वे आगे कहते हैं, ‘रात में शादी करने का चलन मुगलों के आने के बाद शुरू हुआ है। क्योंकि दिन में शादी करने में दिक्कतें होती थीं। इसलिए शादी रात में की जाती थी ताकि किसी को पता न चले। शाम ढलने पर बारात आती थी और स्थिर लग्न देखकर रात में ये रस्में निभाई जाती थीं।’

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